सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को सुझाव- संक्रमितों की पहचान करने वाला हर टेस्ट मुफ्त हो, प्राइवेट लैब ज्यादा फीस लें तो सरकार वह पैसा चुकाए

 सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र को सुझाव दिया कि कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों की पहचान के लिए होने वाला हर टेस्ट मुफ्त में किया जाए। जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने केंद्र से कहा कि ऐसा तंत्र भी विकसित कीजिए, जिससे टेस्ट के लिए लोगों से ज्यादा फीस ली जाए तो उसे सरकार वापस लौटाए। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस रवींद्र भट की बेंच को केंद्र ने बताया कि देशभर में 118 लैब में रोजाना 15 हजार टेस्ट किए जा रहे हैं और हम इसकी क्षमता बढ़ाने के लिए 47 प्राइवेट लैब को भी जांच की मंजूरी दे रहे हैं। डॉक्टरों और स्टाफ पर हमले के मद्देनजर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि डॉक्टर हमारे कोरोना वॉरियर्स हैं, उन्हें सुरक्षा दी जा रही है। 


सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट शशांक देव सुधि ने याचिका दायर कर कहा था कि कोर्ट केंद्र और अधिकारियों को निर्देश दे कि कोरोनावायरस संक्रमण की जांच मुफ्त में की जाए, क्योंकि यह बेहद महंगी है।


केंद्र ने कहा- अभी हमें नहीं पता कितनी प्रयोगशालाओं की जरूरत है
मेहता ने कहा कि अभी हालात लगातार बदल रहे हैं और इन परिस्थितियों में हमें कितनी प्रयोशालाओं की जरूरत होगी और यह लॉकडाउन कितना लंबा चलेगा। इस पर बेंच ने कहा- केंद्र को यह निश्चित करना चाहिए कि निजी लैब जांच के लिए ज्यादा पैसे ना लें और साथ ही ऐसा मैकेनिज्म भी बनाएं, जिसके जरिए जांच के लिए ली गई फीस की वापसी की व्यवस्था हो।


याचिकाकर्ता ने टेस्ट की फीस की सीमा तय करने पर सवाल उठाया था
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 3 अप्रैल को भी सुनवाई की थी और केंद्र से जवाब मांगा था। याचिकाकर्ता ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा जांच की फीस की सीमा 4 हजार 500 रुपए तय किए जाने पर भी सवाल उठाया था, साथ ही जांच सुविधाओं के जल्द विस्तार की भी मांग की थी। आम आदमी के लिए सरकारी अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में जांच कराना मुश्किल है और ऐसे में वे निजी प्रयोगशालाओं और अस्पतालों में आईसीएमआर द्वारा तय की गई फीस देकर जांच करवाने के लिए विवश होंगे। याचिकाकर्ता ने कहा कि जांच ही एक रास्ता है, जिसके जरिए महामारी को रोका जा सकता है। अधिकारी पूरी तरह से इस हाल से पूरी तरह अनभिज्ञ और असंवेदनशील हैं कि आम आदमी पहले से ही लॉकडाउन के चलते आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहा है।


नेशनल टास्क फोर्स ने की थी 4 हजार 500 रुपए फीस की अनुशंसा
कोरोनावायरस के लिए बनी नेशनल टास्क फोर्स की अनुशंसा पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने टेस्ट के संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया था। स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि कोरोना संक्रमण की जांच की फीस 4 हजार 500 रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसमें 1500 रुपए कोरोना संदिग्ध के स्क्रीनिंग टेस्ट के लिए और संक्रमण की जांच के लिए किए जाने वाले टेस्ट की फीस 3 हजार रुपए तय की गई थी।


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कुछ लोगों को कड़ी मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिल पाती है, ऐसी स्थिति में निराश होने से बचना चाहिए। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार एक व्यक्ति बहुत मेहनत करता था, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पा रही थी। असफलता और धन की कमी की वजह से उसकी परेशानियां बढ़ती जा रही थीं। ऐसे में वह दुखी हो गया। एक दिन वह अपने गुरु के पास पहुंचा। दुखी व्यक्ति ने संत को अपनी सारी परेशानियां बता दीं। संत ने उसकी सारी बातें ध्यान से सुनी। गुरु समझ गए कि उनका शिष्य बहुत ज्यादा निराश है। उन्होंने शिष्य को एक कथा सुनाई। गुरु ने कहा कि किसी गांव में एक लड़के ने बांस और कैक्टस का पौधा लगाया। बच्चा रोज दोनों पौधों को बराबर पानी देता था। सारी जरूरी देखभाल करता था। इसी तरह काफी समय व्यतीत हो गया। कैक्टस का पौधा तो पनप गया, लेकिन बांस का पौधे में कुछ भी प्रगति नहीं दिख रही थी। लड़का इससे निराश हुआ, लेकिन उसने दोनों पौधों की देखभाल करना जारी रखा। कैक्टस का पौधा तेजी से बढ़ रहा था, लेकिन बांस का पौधा वैसा का वैसा ही था। लड़का ने कुछ दिन और दोनों की देखभाल की। अब बांस के पौधे में थोड़ी सी उन्नति दिखाई दी। लड़का खुश हो गया। इसी तरह कुछ और दिन निकल गए। अब बांस का पौधा बहुत तेजी से बढ़ रहा था। कैक्टस का पौधा छोटा रह गया। संत ने शिष्य से कहा कि इस कथा की सीख यह है कि बांस का पौधा पहले अपनी जड़े मजबूत कर रहा था। इसीलिए उसकी शुरुआत बहुत धीरे-धीरे हुई, लड़का इससे निराश नहीं हुआ और उसने देखभाल जारी रखी। जब उसकी जड़े मजबूत हो गईं तो वह तेजी से बढ़ने लगा। ठीक इसी तरह हमारे साथ भी होता है। कभी-कभी हमें भी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन फल देरी से मिलता है। ऐसी स्थिति में मेहनत करते रहना चाहिए। निराश होने से बचें।
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